पंकज चतुर्वेदी का नवीनतम कविता संग्रह 'रक्तचाप और अन्य कविताएँ'

पंकज चतुर्वेदी की कविताएँ अक्सर छोटी होती हैं. कुछ कविताएँ महज 4-5 पंक्तियों की होती हैं. लेकिन उनमें अनुभूति की दृष्टि से एक सघनता और संरचना की दृष्टि से एक कसावट हो सहज ही लक्षित किया जा सकता है. उनमें छोटी कविताओं का बड़ा कवि बनने की भरपूर संभावना है.
‘रक्तचाप और अन्य कविताएँ’ से एक छोटी कविता :
आते है...
जाते हुए उसने कहा
कि आते हैं
तभी मुझे दिखा
सुबह के आसमान में
हँसिये के आकार का चन्द्रमा
जैसे वह जाते हए कह रहा हो
कि आते हैं
वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘रक्तचाप और अन्य कविताएँ’ की ज्यादातर कविताओं के पीछे छोटी या बड़ी कोई कहानी है, जिसे सिर्फ उतना ही कहा गया है जितने से बेमतलब और बेतरतीब-सी महसूस होती ज़िन्दगियों का कोई मानी यातर्क रौशन हो सके. ढेर सारी कविताएँ बतियाती हुई-सी हैं, जो पढ़ते वक्त सुनाई-सी देने लगती हैं. डर, अस्थिरता, घृणा और अपमान के निजी एहसासात को उनके सामजिक उद्गम-मूलों में पकड़ पाना इन कविताओं की बड़ी उपलब्धि है.
24 अक्टूबर 1971 को इटावा में जन्मे पंकज चतुर्वेदी ने अपनी आरम्भिक शिक्षा कानपुर और लखनऊ में पूरी की और जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय से एम.ए., एम. फिल और पीएच. डी की उपाधियाँ प्राप्त की.
पंकज चतुर्वेदी कविता, संस्कृति और शिक्षा से जुड़े विभिन मुद्दों पर लगातार लेखन करते रहे हैं. अब तक उनके तीन कविता-संग्रह और आलोचना की चार पुस्तकें प्रकशित हो चुकी हैं. ‘रक्तचाप और अन्य कविताएँ’ उनका तीसरा और नवीनतम कविता संग्रह है. वे इस समय डॉ० हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के हिन्दी विभाग में अध्यापन करते हैं.
‘रक्तचाप और अन्य कविताएँ’ज्यादातर आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) पर उपलब्ध है
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